संत कबीर
संत कबीर
प्रारंभिक जीवन
गुरु से मिलना
कबीर जी ने एक बार स्वामी रामानन्द जी के शिष्य विवेकानन्द जी से श्रोताओं के सामने प्रश्न किया कि परमात्मा कौन है? विवेकानंद जी के पास कोई जवाब नहीं था। अत: श्रोताओं के सामने अपना मान बचाने के लिए उन्होंने बालक रूप में कबीर को डाँटना शुरू कर दिया कि उनकी जाति और उनके गुरु कौन हैं? वहाँ उपस्थित श्रोताओं ने बताया कि कबीर जी निचली जाति के जुलाहा/धानक हैं। कबीर जी ने कहा, "मेरे गुरु आपके भी गुरु हैं। मैंने स्वामी रामानन्द जी से दीक्षा ली है।" विवेकानंद जी हँसे, “देखो लोगों! यह बालक झूठ बोल रहा है। स्वामी रामानन्द जी नीची जाति के लोगों को दीक्षा नहीं देते।। मैं स्वामी रामानंद जी को बताऊंगा और फिर तुम सब भी कल आकर देखना कि स्वामी रामानन्द जी इस बालक को किस प्रकार दण्ड देंगे।
विवेकानंद जी ने स्वामी रामानन्द जी को सब बात बताई। स्वामी रामानन्द जी ने भी क्रोधित होकर बालक को लाने को कहा। अगले दिन सुबह भगवान कबीर जी को स्वामी रामानन्द जी के सामने लाया गया। स्वामी रामानन्द जी ने अपनी झोंपड़ी के सामने यह दिखाने के लिए एक परदा लटका दिया था कि उन्हें दीक्षा देने की तो बात ही छोड़िए, वे तो उनके दर्शन भी नही करते। स्वामी रामानन्द जी ने बड़े क्रोध में परदे के पार से कबीर परमेश्वर जी से पूछा कि वे कौन हैं? कबीर जी ने कहा, "हे स्वामी जी, मैं इस सृष्टि का निर्माता हूं। यह सारा संसार मुझ पर आश्रित है। मैं ऊपर सनातन धाम सतलोक में निवास करता हूँ।"
स्वामी रामानन्द जी यह सुनकर नाराज़ हो गए। उन्होंने उन्हें फटकार लगाई और उनसे कुछ और प्रश्न पूछे! जिनका उत्तर एक आदर्श शिष्य की तरह व्यवहार करते हुए कबीर जी ने शांति और विनम्रता से दिया। तब रामानन्द जी ने सोचा कि बालक के साथ चर्चा करने में काफी समय लगेगा, वह पहले अपनी दैनिक धार्मिक साधना पूरी कर लें।
तब भगवान कबीर जी ने एक बार स्वामी रामानन्द जी के शिष्य विवेकानन्द जी से उन श्रोताओं के सामने प्रश्न किया, जिन्हें वे विष्णु पुराण सुना रहे थे कि परमात्मा कौन है? विवेकानंद जी के पास कोई जवाब नहीं था। अत: श्रोताओं के सामने अपना मान बचाने के लिए उन्होंने बालक रूप में कबीर परमेश्वर जी को डाँटना शुरू कर दिया कि उनकी जाति और उनके गुरु कौन हैं? वहाँ उपस्थित श्रोताओं ने बताया कि कबीर जी निचली जाति के जुलाहा/धानक हैं। भगवान कबीर जी ने कहा, "मेरे गुरु आपके भी गुरु हैं। मैंने स्वामी रामानन्द जी से दीक्षा ली है।" विवेकानंद जी हँसे, “देखो लोगों! यह बालक झूठ बोल रहा है। स्वामी रामानन्द जी नीची जाति के लोगों को दीक्षा नहीं देते।। मैं स्वामी रामानंद जी को बताऊंगा और फिर तुम सब भी कल आकर देखना कि स्वामी रामानन्द जी इस बालक को किस प्रकार दण्ड देंगे।
विवेकानंद जी ने स्वामी रामानन्द जी को सब बात बताई। स्वामी रामानन्द जी ने भी क्रोधित होकर बालक को लाने को कहा। अगले दिन सुबह भगवान कबीर जी को स्वामी रामानन्द जी के सामने लाया गया। स्वामी रामानन्द जी ने अपनी झोंपड़ी के सामने यह दिखाने के लिए एक परदा लटका दिया था कि उन्हें दीक्षा देने की तो बात ही छोड़िए, वे तो उनके दर्शन भी नही करते। स्वामी रामानन्द जी ने बड़े क्रोध में परदे के पार से कबीर परमेश्वर जी से पूछा कि वे कौन हैं? भगवान कबीर जी ने कहा, "हे स्वामी जी, मैं इस सृष्टि का निर्माता हूं। यह सारा संसार मुझ पर आश्रित है। मैं ऊपर सनातन धाम सतलोक में निवास करता हूँ।"
स्वामी रामानन्द जी यह सुनकर नाराज़ हो गए। उन्होंने उन्हें फटकार लगाई और उनसे कुछ और प्रश्न पूछे! जिनका उत्तर एक आदर्श शिष्य की तरह व्यवहार करते हुए भगवान कबीर जी ने शांति और विनम्रता से दिया। तब रामानन्द जी ने सोचा कि बालक के साथ चर्चा करने में काफी समय लगेगा, वह पहले अपनी दैनिक धार्मिक साधना पूरी कर लें।
स्वामी रामानन्द जी ध्यान की अवस्था में बैठे हुए कल्पना करते थे कि वे स्वयं गंगा से जल लाए हैं, भगवान विष्णु की मूर्ति को स्नान कराया है, वस्त्र बदले हैं, माला पहनाई है और अंत में मूर्ति के मस्तक पर मुकुट यथावत रखा है। उस दिन स्वामी रामानंद मूर्ति के गले में माला डालना भूल गए। उसने माला को मुकुट से उतारने की कोशिश की लेकिन माला अटक गई। स्वामी रामानन्द जी व्यथित हो उठे, और अपने आप से कहने लगे कि “अपने पूरे जीवन में मैंने आज तक कभी ऐसी गलती नहीं की थी। मैंने आज ऐसा क्या गलत किया कि ऐसा हो गया?” तभी कबीर ने कहा, "स्वामी जी! माला की गाँठ खोलो। तुम्हें मुकुट उतारना नहीं पड़ेगा।"
रामानन्द जी ने सोचा, “मैं तो केवल कल्पना कर रहा था। यहां कोई मूर्ति नहीं है। बीच में एक पर्दा भी है। और, यह बच्चा जान गया कि मैं मानसिक रूप से क्या साधना कर रहा हूं।" वह क्या गाँठ खोलते। यहां तक कि उन्होंने पर्दा भी फेंक दिया और जुलाहा जाति के बालक रूप में कबीर परमात्मा को गले से लगा लिया। रामानन्द समझ गए कि यह ईश्वर हैं।
फिर 5 वर्ष के बच्चे के रूप में कबीर जी ने 104 वर्ष के महात्मा स्वामी रामानंद जी को ज्ञान समझाया। उन्होंने उन्हें सतलोक दिखाया, उनको वास्तविक आध्यात्मिक ज्ञान बताया और रामानंद जी को दीक्षा दी। कबीर परमेश्वर जी ने रामानन्द जी को सांसारिक दृष्टि से अपना गुरु बना रहने को कहा अन्यथा आने वाली पीढ़ी कहेगी कि गुरु प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि कबीर जी का भी कोई गुरु नहीं था। स्वामी रामानन्द जी ने उनसे अनुरोध किया कि वह ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि वे जानते थे कि ईश्वर का गुरु बनना पाप है। भगवान कबीर जी ने कहा, "आप मेरी आज्ञा समझकर इसका पालन करें।"
कबीर के दोहे
कबीर का निर्वाण
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