Ramkrishna Aur Sadguru Kabir


रामकृष्णा और सद्गुरु कबीर

भक्ति की चर्चा करने पर इतनी शांति मिलती है जिसका ओर३छोर नहीं। है न। और भक्ति उत्पन्न कैसे हो, जागे कैसे हमलोगों के भीतर। इसके लिए श्रीराम भक्ति का शबरी से सांगोपांग चर्चा करत हैं। जैसे उन्होंने कहा-

प्रथम भक्ति संतन कर संगा।


और दूसरी

रति मम कथा प्रसंगा।

तो संतन का संग तो समझ में आता है, और दूसरी मम कथा प्रसंगा-कथा मतलब क्या होता है? उनका जीवन, उनकी जीवनचर्या की चर्चा, उसका प्रसंग का बांटना सुनना अथवा विचार करने से मन में शनैः शनैः भक्ति का उद्वेग होता है।

तीसरी भक्ति क्या है? गुरुपद पंकज सेवा। तीसरी भक्ति अमान। ये तीन चीज उन्होंने कहा। पहली भक्ति संतन कर संगा। संतों का संग प्रथम भक्ति है। और दूसरी रति मम कथा प्रसंगा। उनके जीवन३आदर्श, उनके जीवन की चर्चा। एक बात बताते हैं। श्रीराम बचपन से कोई चमत्कारी व्यक्तित्व नहीं रखते थे। उनकी जो जीवनचर्या है, उनका जो जीवनचरित है, उसमें स्पष्ट होता है कि वे मानवीय गुणों पर वे अधिक फोकस करते हैं। आदर्श मानवीय गुणों का विकास क्या है, कैसे हो, सोच कैसे हो, इस पर फोकस करते हैं। तो श्रीराम का बचपन की जो चर्चा आती है उसमंे वे अपने भाइयों से प्रेम करते थे, अपने मित्रों से प्रेम करते थे, अपने माता३पिता से प्रेम करत थे और आज्ञाकारी थे। और स्वयं हार जाते थे और अपने भाइयों को जीता देते थे। अथवा स्वयं हार जाते थे और अपने मित्रों को जीता देते थे। क्यों?

एक अद्भुत तरीके से मानवीय मन का विकास होता जाता है। होता है न। कोई बात नहीं, हम छोटा रहे, चलेगा। पर अगले सभी लोग, दूसरे लोग सुखी रहें। दूसरे लोग शांत हो, दूसरे लोग को अच्छी फीलिंग होता हो तो हमें क्षणिक हार जाने में क्या हर्ज है। अद्भुत नहीं है। फिर जैसे वो जैसे३जैसे बड़े हुए कभी भी उन्होंने चमत्कार को महत्त्व नहीं दिया। वे चमत्कार पर भरोसा ही नहीं करते थे। अगर उनका व्यक्तित्व केवल चमत्कार से परिपूर्ण होता तो हम सब इंसान मनुष्य सोचते कि अरे भई! हम राम जैसा कहां से बन सकते हैं। उनके पास चमत्कारिक शक्ति थी। इसलिए उन्होंने चमत्कार को बिलकुल एक तरफ रखा। जब रावण नाटक३चाटक कर रहा था, माया के द्वारा भिन्न३भिन्न रूप धारण कर रहा था तो ऐसी बात नहीं रही होगी कि श्रीराम के पास उस तरह की क्षमता न हो। उनके पास भी वो क्षमता रही होगी, पर उन्होंने चमत्कार आदि का अवलंबन नहीं लिया। मानवीय गुण। 14 साल का संघर्ष रहा। तो 14 साल के संघर्ष में वे चाहते तो चमत्कार उत्पन्न कर३करके अपने लिए सुस्वादु व्यंजन, रहने के लिए आलीशान झोपड़ा अथवा और कुछ का सृजन कर सकते थे। पर वे दिखलाए इंसानों को कि संघर्ष के समय में भी प्रतिकूल समय में भी कैसे रहा जाता है। शांत संतुलित। है न। पूरा जीवन का आदर्श यही है।

लेकिन कृष्ण का। जब तुम्हारे जीवन में मानवीय गुणों का विकास होता है। बढ़िया से भली३भांति मानवीय गुणों का विकास किया जाए तो शनैः शनैः चमत्कार आता है। श्रीराम में 14 कला प्रकाशित हुए और श्रीकृष्ण को सोलह कला माना जाता है। तो श्रीकृष्ण का जीवन कैसा है कि बचपन से ही उनमें चमत्कार दिखने लग जाता है। जन्म के छठा दिन किस असुर का संहार किया था उन्होंने। छागड़ जो अपने पैर से धकेल कर छागड़ उस पर गिरा दिए थे। याद आया।

तो उनका जन्म काल से चमत्कार दिखने लगा। क्योंकि अब कलयुग का प्रवेश होनेवाला था तो अपने जीवन से विराटतम उपदेश दिया। जीवन जी कर विराट उपदेश। ज्ञान३विज्ञान, अध्यात्म, उपदेश और कहां पर परिस्थिति को किस तरह हैंडल किया जाता है ये सब कुछ उन्होंने कहा।

अब बात आ गई सद्गुरु कबीर साहब पर। हमलोग देखते हैं, पहले बात आई त्रोता युग पर, द्वापर मंे श्रीकृष्ण का अवतार हुआ और कलयुग में सद्गुरु कबीर साहब आए। तो जीवण साहब नामक एक गुजराती संत हो गए हैं, सैकड़ों वर्ष पूर्व। उन्होंने कहा-

द्वापर कान्हा प्रगटे, त्रोता में रघुवीर ।

कलि काल में जीवणा, प्रगटे संत कबीर।।

बढ़िया से यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए ऐसा प्रकट होता है कि सद्गुरु कबीर साहब मंे राम और कृष्ण दोनों ही प्रकाशित हो रहे हैं। मतलब चमत्कार और मानवीय गुण। अब बताइए उनके जन्मकाल से ही चमत्कार की घटना मिलती है अथवा बड़े होने पर जब वे योग किये ध्यान किये साधन किये तब उन्होंने चमत्कार पाया। क्या है?

उनके पास चमत्कार और मानवीय मूल्यों का विकास चरम सीमा पर अनुभूत होता है। जहां वे मानवीय गुणों के विकास के लिए साखी गं्रथ में ही देख लीजिए तो 84 प्रकरण उन्होंने कहा है। वैसे गुरु मां ने जो संकलन किया उसमें 65 अंग आया हुआ है। क्या कभी सोचा गया कि उन्होंने 84 अंग ही क्यों, 85 अंग क्यों नहीं 83 अंग क्यों नहीं? कभी किसी ने सोचा?

हमारे आवागमन की परिधि माना जाता है चौरासी लाख योनि। वैसे ब्र›कुमारीज वाले कहते हैं कि मनुष्य का जन्म मनुष्य में होता है कीड़ा का जन्म कीड़ा में होता है, स्त्राी का जन्म स्त्राी में होता है, पुरुष का जन्म पुरुष में होता है। ऐसा मानते हैं, पर हमलोग यदि अपने पुराणों को टटोलते हैं तो ऐसा कहीं है कि जो पहले स्त्राी थे फिर पुरुष हो गए।

पुराणों में कथा आती है कि एक बार एक कीड़ी गुजर रही थी तो संत हंसने लगे थे। ब्र›ा जी हंसने लगे थे और जब उनसे पूछा गया कि आप क्यों हंस रहे हो तो उन्होंने कहा कि ये कीड़ियां जो आगे रेंग रही है, ये कीड़ियां कभी इंद्रलोक के साम्राज्य को प्राप्त की हुई थी। ये कभी इंद्रलोक की प्राप्ति की थी और शनैः शनैः गिरते३गिरते आज कीड़ी योनि में आ गई है। याद आई न आपलोगों को ये कथा। इसका मतलब क्या है?

जो आज इस जन्म में इंद्र है वो कल कीड़ी भी बन सकता है। यदि अपने मानवीय गुणों का विकास नहीं किया गया, यदि हमने अध्यात्म में और व्यवहार को संतुलित बनाने का प्रयास नहीं किया, अध्यात्म में अभी ऐसे बहुत सारे लोग मिलेंगे जो सब व्रत कर रहे हैं और मंदिर भी जा रहे हैं और तीर्थ स्नान भी कर रहे हैं, और सब कुछ कर रहे हैं, पर उनका बोल३व्यवहार अच्छा नहीं है। ऐसे लोग हैं, आपलोग किसी ऐसे लोगों से मिलते हो या नहीं? उत्तर दीजिए।

मिलते हैं हमलोग कि जो बिलकुल अध्यात्मरत हैं, पर उनके जीवन में ऐसा कुछ दिखता नहीं है। वैसे ही कठोर, वैसे ही क्रूर, वैसे ही लालची, वैसे ही क्रोधी, वैसे ही कटुभाषी, वैसे ही सांसारिकता से रचा३बसा हुआ। तो ऐसे लोग धीरे३धीरे शनैः३शनैः और आपलोग रामजी के न्याय पर भी सुने होंगे जब श्रीराम जी के दरबार में कुत्ता न्याय पाने के लिए गया। आपलोग सुने हुए हैं कि नहीं? एक ब्रा›ण बिना कसूर का उसे पत्थर से मार दिया था जो कि कुत्ते का सिर फूट गया था। तो अपना अर्जी लेकर गए कि मैंने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे कि मेरे सिर को फोड़ा जाए अथवा मुझे मारा जाए। मैंने ऐसा कुछ नहीं किया, लेकिन अमुक ब्रा›ण ने हमारे सिर को फोड़ा। रोने लगा कुत्ता। तो श्रीराम शांत किये कुत्ते को और उस ब्रा›ण को बुलवा भेजा। ब्रा›ण उपस्थित हुआ और श्रीराम ब्रा›ण से पूछते हैं कि क्या तूने इस कुत्ते को मारा।

तो ब्रा›ण कहता है, हां मुझसे गलती हो गई, मैंने मारा।



श्रीराम पूछते हैं, ‘तो क्यों मारा?’




ब्रा›ण कहता है कि मैं सुबह भिक्षाटन के लिए निकला, लेकिन भिक्षा मिला नहीं। भूख बहुत तेज लग रही थी। कुछ खाने के लिए नहीं था। रास्ते में कुत्ता बैठा हुआ था। तो मैं अपनी खिजलाहट निकाल दिया कुत्ते पर। पास ही पत्थर था तो उसके सिर पर पटक दिया। कुत्ता रोने३चिल्लाने लगा लेकिन मुझे कुछ भी नहीं लगा। कुत्ते के सिर पर पत्थर पटककर आगे बढ़ गया। हमसे गलती हुई और जो दंड दिया जाएगा उसे हम स्वीकार करेंगे।




तो श्रीराम कुछ सोचकर उसे कुत्ते से ही बोले कि तुम न्याय करो। कौन३सा दंड देना चाहोगे।




तो वो कुत्ता बोला कि महाराज! इस ब्रा›ण को कलिंजर मठ का महंत बना दिया जाए।




तो सब कोई हा हा करके हंसा कि कुत्ता आखिर कुत्ता ही होता है। बुद्धि क्या है, मांगा ही तो ये दंड है या पुरस्कार। कहां ये भिक्षाटन करके अपना जीवन यापन करनेवाला गरीब ब्रा›ण और कहां विशाल कलिंजर मठ का महंती। अद्भुत था उनके लिए। ब्रा›ण तो बहुत खुश हुआ। बिलकुल गद्गद् हो गया। ब्रा›ण खुश होकर उनको रथ पर बिठाकर कलिंजर मठ की ओर ले जाया जाने लगा। ब्रा›ण एकदम गद्गद्।




तब सबके हंसने के कारण को श्रीराम स्वयं पूछे। पूरी सभा मुस्करा रही थी, इसके पीछे तथ्य क्या था। तो मंत्राी सुमंत न कहा, बताइए ये कुत्ता उसको पुरस्कार दिया है या दंड। तो श्रीराम तो सब जानते थे, पर फिर भी उस कुत्ते से पूछे कि बताओ तुमने क्या दिया पुरस्कार या दंड।




तो वो कुत्ता बोला कि मैं विगत जन्म में उसी कलिंजर मठ का महंत था। अपने मन में जहां तक समझ आया वहां तक धर्म का पालन किया, पर जो होना चाहिए वो नहीं हो पाया। इसलिए जब मेरी मृत्यु हुई तो मैं कुत्ते की योनि में चला आया। अब ये ब्रा›ण उस कलिंजर मठ में जा रहा है। है ये ब्रा›ण क्रोधी। बेमतलब अपने क्रोध का भड़ास निकालता है। ऐसे में उस विशाल कलिंजर मठ में जाने पर अपने क्रोध के वशीभूत होकर जरूर पाप करेगा। मैं तो क्रोध के वशीभूत होकर अथवा अन्य विकारों से ग्रसित होकर कुछ भी गलत नहीं किया। केवल मूर्छित की तरह जिया। केवल जितना चौकन्ना रहना चाहिए था उस मठ में उतना चौकन्ना नहीं रहा। तो हमारी कुत्ते की योनि हुई और अब ये ब्रा›ण कलिंजर मठ का होने जा रहा है महंत और महाक्रोधी, इसकी गति क्या होगी। ये वाल्मीकि रामायण में आता है। योनि बदला कि नहीं?




हमलोगों का धर्मशास्त्रा जो कहता है, योनि बदलती है। कहां वो मठ का महंत और कहां ये सड़क पर भौंकने वाला कुत्ता। लेकिन आज ऐसे बहुत सारे लोग जैसे ब्र›कुमारीज ही हैं तो वे नहीं मानते हैं कि योनि बदलती है। वे कहते हैं कि मनुष्य हमेशा मनुष्य बनेगा, कुत्ता हमेशा कुत्ता योनि में जाएगा, मगरमच्छ हमेशा मगरमच्छ ही बनेगा, बकरे हमेशा बकरे बनेंगे, गाय हमेशा गाय बनेंगे। आपका सिद्धांत कुछ और है। है न। आपका मतलब सनातन धर्म का सिद्धांत कुछ और है।

तो सद्गुरु कबीर साहब प्राचीनतम संत, धर्म सनातन धर्म को माननेवाले थे। उन्होंने चौरासी अंक लिखा और जीव चौरासी लाख योनियों से छूट जाए, इसका सूत्रा दिया। समझ रहे हो, चौरासी लाख योनि, उसमें मानवीय समस्त गुणों को समेकित किया गया है। मतलब सम्मिलित किया गया है। जितने भी आदर्श मानवीय गुण हैं, सबकी चर्चा उसमें की गई है। की गई है? जीवन चरित का इतिहास है।




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