Sadguru Kabir Sanatan Dharm

 हमारे पूर्वजों ने कहा है पूरी वसुधा में जो भी रहता हो चाहे वह कीट३पतंग हो, गाय हो या कुत्ते हो चाहे इंसान चाहे इ्रसान हो, चाहे इस जाति का हो चाहे उस जाति का हो, चाहे इस धर्म को माननेवाला हो चाहे उस धर्म को माननेवाला हो, चाहे ये भाषा बोलनेवाला हो चाहे उस भाषा को बोलनेवाला हो, चाहे कोई और भाषा बोलनेवाला हो सब सुखी हो। 

और सद्गुरु कबीर साहब केवल वसुधा की बात नहीं बोले, उन्होंने कहा, जो भी अस्तित्व है, ये बात वैसे वेदों में आती है, चांद३तारे, आकाश, पशु३पक्षी सब३के३सब सुखी हो, इसकी बात वेदों में आती है। पर ये मुखर रूप से प्रकाशित होता है सद्गुरु कबीर साहब की वाणियों में। वे सबके हित की बात करते हैं और सबके हित के लिए वे कहते हैं मिल३जुल रहना। एक लाइन मतलब तुम चाहे किसी भी जाति के हो, तुम चाहे किसी भी वर्ण के हो, तुम चाहे किसी भी प्रांत के हो, तुम चाहे किसी भी भाषा३भाषी के हो, तुम चाहे किसी भी देश में रहनेवाले हो, चाहे तुम किसी भी मत३पंथ को माननेवाले हो, किसी भी धर्म को माननेवाले हो, किसी भी महापुरुष को माननेवाले हो, एक मार्ग एक छोटा३सा सूत्रा मिल३जुल रहना। पशुओं से मिल३जुलक रहो, पक्षियों से मिल३जुलकर रहो। आकाश से धरती से मिल३जुलकर रहो, ग्रह३नक्षत्रों से मिलजुलकर रहो, पानी३पत्थरों से मिल३जुलकर रहो। पूरे अस्तित्व से मिल३जुलकर रहो और मिलजुल कर रहने के लिए क्या चाहिए? प्रेम। 

इसलिए उन्होंने कहा-

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय ।

ढाई आखर प्रेम का पढ़ै सो पंडित होय। 

यदि आप धर्मात्मा हैं, यदि आप संत हैं, यदि आप उपदेशक हैंऔर आप आपस में नफरत भड़काते हैं। आप एक इंसान को दूसरे इंसान से नफरत करना सिखाते हो। आप इस मत में हो तो बाकी सभी मतों से नफरत करो। 


सद्गुरु कबीर साहब ने जहां प्रेम की बात की, वहीं अंधविश्वासों और कुरीतियों से लड़ने की बात भी कही। चाहे हिसा, जातिवाद इत्यादि हो चाह और कोई३कोई तरह३तरह की कुरीति हो, अंधविश्वास हो, सबके तम्बू के खम्भे उन्होंने उखाड़ फेंका। उनकी वाणियों के छत्रातले जब आया जाता है तो ऐसा लगता है जैसे प्रदुषणमुक्त आकाश के तले आकर बैठा गया हो। आपलोगों को याद है आज से 30-35 साल पहले 

आठवें रमैनी में सद्गुरु कह रहे हैं-

जो वेदों में उपदेश है उपनिषदों वेदों के ऋषियों का निश्चय बहुत ही कीमती है। और ये कीमती चीज अधिकारियों के प्रति कोई लिखित शास्त्रा के रूपमें हमलोगों को उपलब्ध है। 

परम ततु का निज परमाना

परम तत्व का प्रमाण तुम्हारे भीतर बसी हुई तुम्हारी आत्मा है। विशुद्ध प्योर बिलकुल परमात्मा के क्वालिटी वाली आत्मा। 

परम ततु ..सनकादिक नारद सुत माना। 

चाहे सनक सनंदन ऋषि हो चाहे नाद जी हो चाहे चाहे सुखदेव मुनि हो सभी ने इसी शाश्वत ज्ञान को इसी शाश्वत धर्म की चर्चा और प्रचार प्रसार किया। (शाश्वत धर्म क्या है सनातन धर्म।)

जागबलिक औ जनक संवादा

इसी सनातन ज्ञान, सनातन धर्म अथवा प्रेम के ज्ञान की चर्चा याज्ञवल्क्य और जनक जी के संवाद में भी उपलब्ध है। 

दत्तात्रोय वोही रस स्वादा

दत्तात्रोय ऋषि उसी स्वाद का रसापान करते हैं। वही सनातन ज्ञान, वही सनातन ऋत, वही सनातन धर्म और वही सनातन विज्ञान। और क्या है-

वही बात राम वसिष्ठ मिलि गाई। 

वही बात राम और वसिष्ठ जी मिलकर गान करते हैं। जो अभी भी हमलोगों के पास योगवाशिष्ठ रामायण के रूप में उपलब्ध है। 

उसी ज्ञान धर्म विज्ञान को जनक जी ने 

सनातन धर्म में प्रेम की झलक है। ऋषियों ने गाया है-

ओम द्वौ शांति..

इसी से मानवता का कल्याण है। 

कुल मरजादा खोय के खोजिन पद निर्बान।

तुमलोग कुल जाति की मर्यादा खोकर इसमें अटकना छोड़कर उस सर्वव्यापी सत्य शाश्वत सत्ता की खोज करो। शाश्वत धर्म को ढूंढो। मिल जाएगा तुम्हें यदि पंथवाद से ऊपर उठकर तुम वेदों का गीता उपनिषदों का अध्ययन करो। अथवा कबीर वाणी का अनुसरण करो। 

जीयत मुआ नहिं होय

तुम जिंदा हो तो जिंदा रहो, किस तत्व से जिंदा रहोगे, सनातन तत्व। सनातन तत्व की खोज करो। जिससे ये मरणधर्म बनने३बिगड़नेवाले पागलपन से मुक्त हो सको। 

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