Ishwar se Mang / ईश्वर से मांग

 ईश्वर से मांग

बादशाह अकबर एक दिन जंगल में आखेट कर रहे थे। वे भटककर रास्ता भूल गए। देर हो गई तो उन्हें प्यास और भूख सताने लगी। ऐसा प्रतीत होने लगा, जैसे प्राण होठों पर आ गए हों। तभी उन्होंने एक खेत देखा। उसके किनारे एक किसान खड़ा था। वे किसान के पास आकर बोले, ‘तुम्हारे पास कुछ खाने को है?’

किसान ने कहा, ‘क्यों नहीं, आओ बैठो।’

उसने बादशाह को अपने पास की रूखी३सूखी रोटी खिला दी, दूर से लाकर पानी भी पिला दिया। खा३पीकर बादशाह प्रसन्न हुए और किसान से बोले, ‘तुम क्या काम करते हो?’

किसान ने कहा, ‘खेती३बारी करता हंू। बहुत कठिनता से जीवननिर्वाह होता है।’

अकबर ने कहा, ‘सुनो, मैं भारत का बादशाह हंू। कभी आवश्यकता पड़े तो मेरे पास आगरा आना।’ यह कहकर वे चले गए। किसान उन्हें मार्ग बता दिया।

इस घटना को घटित हुए कई वर्ष व्यतीत हो गए। एक बार सालों भर वर्षा नहीं हुई। किसान का खेत सूख गया। उसने सोचा कि बादशाह के पास चलता हंू। उनसे कुछ सहायता मांगूंगा। वह अपने गांव से चल पड़ा और राजधानी पहंुचा। वहां देखा कि बादशाह की सवारी जा रही है। बहुत बड़ा लाव३लश्कर उनके साथ है।  बादशाह हाथी पर बैठे हैं। किसान ने देखते ही आवाज दिया, ‘अकबरा! ओ अकबरा!’

सुननेवाले आश्चर्यचकित रह गए कि यह कौन असभ्य आ गया? किसी ने कहा, ‘इसका सिर काट दो, यह असभ्य है।’

अकबर ने भी इस आवाज को सुना। वह दूर से ही देखकर उसे पहचान लिया। बादशाह ने उसे अपने पास बुलाया और हाथी पर बैठा लिया। 

जब वे महल में पहंुचे तो उन्होंने नौकरांे को आज्ञा दी, ‘इसने मेरी जान बचाई थी। इसलिए मेरे कमरे में ही इसके लिए भी सोने की व्यवस्था कर दो।’

अकबर ने रात में उसे अपने साथ ही भोजन करवाया और उसके सो जाने पर स्वयं सोया।

प्रातःकाल किसान उठा तो देखा कि बादशाह नीचे जमीन पर एक कपड़ा बिछाकर उस पर बैठे हैं और घुटने टेक कर, हाथ फैलाकर पता नहीं किससे क्या मांग रहे हैं। वस्तुतः बादशाह नमाज पढ़ रहे थे। जब वे उससे निवृत्त हुए तो किसान ने पूछा, ‘यह तुम क्या कर रहे थे?’

बादशाह ने कहा, ‘आशीर्वाद मांग रहा था।’

किसान ने पूछा, ‘किससे?’

बादशाह ने कहा, ‘भगवान से।’

किसान ने कहा, ‘अच्छा!’ और वह अपनी लाठी उठाकर चल पड़ा।

बादशाह ने कहा, ‘अरे, तुम कहां जाते हो? यह तो बताओ कि तुम किसलिए आए थे?’

किसान ने कहा, ‘बादशाह! मैं आया तो था तुमसे सहायता मांगने, परंतु यहां आकर देखा कि तुम भी मांगते ही हो। अब मैं भी उसी से मांग लंूगा। तुम स्वयं मांगनेवाले हो, तुमसे क्या मांगंूगा मैं?’

ऐसा अटल विश्वास जिसके हृदय में है, वही परमात्मा की उपासना का अधिकारी है। ठीक ही कहा गया है-

मीर बंदों से काम कब निकला ।

मांगना है जो कुछ खुदा से मांग।। 

सद्गुरु कबीर साहब भी कहते हैं-

चिन्तामणि चित्त में बसै , सोई चित्त में आनि ।

बिना प्रभु चिंता करै, यही प्रभु की बानि।।

अर्थात् परमात्मस्वरूप चिन्तामणि चित्त में बसता है। उसी का ध्यान, भक्ति अपने चित्त में लाओ, फिर तेरी चिंता किए बिना ही वह स्वयं तेरे लिए चिंता करेगा, यही प्रभु का स्वभाव है।

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